जरा रूपं हरति धैर्यमाशा मृत्युः प्राणान् धर्मचर्यामसूया।
क्रोधः श्रियं शीलमनार्यसेवा ह्रियं कामः सर्वमेवाभिमानः।।
जरा रुपं हरति – बुढ़ापा रूप को हर लेती है
आशा धैर्यं हरति – आशा धैर्य को हर लेती है
मृत्युः प्राणान् हरति – मृत्यु प्राणों को हर लेती है
असूया धर्मचर्यां हरति – असूया धर्मचर्या को हर लेती है
क्रोधः श्रियं हरति – क्रोध श्री को हर लेता है
अनार्यसेवा शीलं हरति – नीचों की सेवा शील को हर लेती है
कामः ह्रियं हरति – काम लज्जा को हर लेती है
अभिमानः सर्वम् एव हरति (तथा) – अभिमान सब कुछ हर लेता है।
श्रियम् ह्रियम् (श्रो ह्री – स्त्री0 द्वि0 ए0) हरति हृ – भ्वादि उ0 लट् प्र0 पु0 ए0 )