दानम् आत्मीयहस्तेन मातृहस्तेन भोजनम्।
तिलकं विप्रहस्तेन परहस्तेन मर्दनम्।।
दानम् आत्मीयहस्तेन शोभते – दान अपने हाथ से अच्छा होता है
भोजनं मातृहस्तेन शोभते – भोजन माता के हाथ से अच्छा होता है।
तिलकं विप्रहस्तेन शोभते – तिलक ब्राह्मण के हाथ से अच्छा होता है
शोभते (शुभ-भ्वा0 आ0 लट् प्र0 पु0 ए0)