॥ ओ३म् ॥
यत्र विश्वं भवत्येकनीडम्
“संस्कृतविश्वम्”
जालपत्र (website) परियोजना
संस्कृत-भारत-प्रतिष्ठानम्
श्री नयना देवी जी, बिलासपुर
हिमाचल प्रदेश – १७४ ३१०
अन्तरीक्षणम्
१. प्रस्तावना
२. संस्कृत जालपत्र (website) की आवश्यकता
३. अन्ताराष्ट्रिया स्थिति
४. यह जालपत्र (website) ही क्यों?
५. परियोजना का उद्देश्य
६. परियोजना की कालावधि
“संस्कृतविश्वम्” जालपत्र (website) परियोजना
१.प्रस्तावना
संस्कृत वाङ्मय मानव जाति की अमूल्य धरोहर हैं। इस वाङ्मय में तपःपूत ऋषिमुनियों एवं क्रान्तद्रष्टा कवियों के जीवनानुभव अनुस्यूत हैं। जो मानव मात्र के लिये कल्याण का कारण हैं। संस्कृत साहित्य का यह वैशिष्ट्य हैं कि इसमें मानव जीवन के समस्त पहलुओं पर गम्भीरता से चिन्तन एवं मनन द्वारा सर्वजन सुखकारक निष्कर्ष निर्णीत किये गये हैं। यह वाङ्मय जहाँ आध्यात्मिक क्षेत्र में उपनिषदों के उच्च ज्ञान को प्रस्तुत करता हैं, वहीं शारीरिक स्वास्थ्य हेतु आयुर्वेद ग्रन्थों के रूप में उपस्थित होता हैं। मानव जीवन की आचार संहिता के रूप में जहाँ एक और वैदिक संहिताएँ एवं धर्मशास्त्र विद्यमान हैं, वहीं गार्हस्थ्य धर्म की सम्पूर्णता हेतु कामसूत्र विषयक ग्रन्थ भी विद्यमान हैं। दर्शनसाहित्य जहाँ मानवमस्तिष्क को ऊर्जस्वी बनाता हैं, वहीं लौकिक साहित्य किसी दुःखी मन पर मलहम लगाता हैं। इतना ही नहीं अरण्यस्थ ऋषि ने मानव की आजीविका एवं वृत्ति का भी पूर्ण ध्यान रखा हैं। इस वाङ्मय में न केवल कृषि ज्ञान विषयक ग्रन्थ उपलब्ध हैं, अपितु अश्वपालन, गोपालन, हस्तिपालन, अनेक विध धातु निर्माण से लेकर विमान निर्माण एवं विविध शिल्पों के सूक्ष्मतापूर्वक गम्भीर विवेचक ग्रन्थ उपलब्ध हैं। किन्तु आधुनिकता के मोह एवं परिश्रम के अभाव में यह अपार संस्कृत वाङ्मय भाण्डागार आज उपेक्षित सा हैं। यत्र-तत्र कतिपय लोग निष्कारण ही केवल धर्मार्थ ज्ञान के भण्डार के संरक्षण के लिए प्रयत्नशील हैं। “संस्कृतविश्वम्” जालपत्र (website) का निर्माण उन निष्कारण धर्म के निर्वाहक विद्वानों द्वारा सम्पादित यज्ञ में एक सार्थक आहुति रूप हैं। जो विश्वपटल पर सम्पूर्ण संस्कृत साहित्य को जालपत्र (Website) के द्वारा प्रस्तुत करने का सार्थक प्रयास हैं।
२. संस्कृतजालपत्र (website) की आवश्यकता
सङ्गणक (computer) के अनुप्रयोग से ज्ञान एवं विज्ञान को नये आयाम प्राप्त हुयें हैं। वस्तुतः वैश्वीकरण के रूप में विश्व को एक नीड का रूप प्रदान करने में सङ्गणक (computer) के अनुप्रयोगों का महत्त्वपूर्ण योगदान हैं। सङ्गणक (computer) के अनुप्रयोग ज्ञान पिपासु की जिज्ञासा को घर बैठे शमन करते हैं। विश्व विख्यात भाषाओं की प्रख्यात ग्रन्थ-राशि बहुत से जालपत्रों (websites) पर उपलब्ध हैं। किन्तु यह करने में संस्कृतज्ञों की प्रगति मन्द हैं। परिणामतः आज भी अन्तर्जाल (Internet) पर संस्कृत वाङ्मय के अत्यन्त महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ उपलब्ध नहीं हैं। अतः जिज्ञासु जनों को आज भी पुस्तकालय पहुँचकर, पुस्तक ढूँढकर जिज्ञासा की शान्ति करना ही एक मात्र मार्ग शेष हैं। विशेषतः विज्ञान पृष्ठभूमि के जिज्ञासु (जो प्रायः पुस्तकालयों को भूल चूके हैं) तो उस संस्कृत वाङ्मय से अपरिचित ही रहते हैं।
“संस्कृतविश्वम् जालपत्र (website) निर्माण परियोजना” का उद्देश्य ऐसे जिज्ञासु जनों के लिये संस्कृत के पाठ्यरूपी (PDF, open file) दृश्यरूपी (video) और श्रव्यरूपी (audio) वाङ्मय को जालपत्र (website) पर उपलब्ध कराना हैं। इस तरह के जालपत्र (website) के निर्माण की वर्तमान काल में महती आवश्यकता हैं। “संस्कृतविश्वम्” website की यह परियोजना ज्ञान के क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण चरण होगा। जिससे जालपत्र (website) प्रयोक्ता वैश्विक स्तर पर संस्कृत वाङ्मय को प्राप्त कर सकेंगे। निश्चित ही इस परियोजना की पूर्णता संस्कृत अनुरागियों की जिज्ञासा को पुष्पित-पल्लवित एवं शोध के नये आयामों का संवर्धन करेगी।
३. अन्तर्राष्ट्रीय स्थिति
अन्तर्जाल (Internet) में संस्कृत के लगभग १५० जालपत्र (websites) होंगे जिनमे से २० प्रमुख जालपत्र (websites) हैं। वही पर ही लगभग २०० जालपत्र (websites) ऐसे हैं जिस में संस्कृत सम्बन्धी विषय हैं। इसके अलावा अन्तर्जाल (Internet) में संस्कृत की लगभग १२५ सङ्कलिकायें (blogs) हैं और face book, twitter, आदि में जिन्हें social networking sites कहते हैं उनमें लगभग १००० संस्कृत पृष्ठ (pages) उपलब्ध हैं जिनमें से २०० सक्रिय संस्कृत पृष्ठ (pages) हैं। उन्हीं social networking sites में ही ५०० संस्कृत के खातें (accounts) हैं। यह अन्तर्जाल (Internet) में संस्कृत का एक सङ्क्षिप्त एवं विहंगम दृश्य हैं।
४. यह जालपत्र (website) ही क्यों?
संस्कृत भाषा का संस्कृत वाङ्मय के रूप में पुस्तक भण्डार बहुत विशाल एवं अनन्त जैसा हैं। आज कल इस पुस्तक रूपी ज्ञानभण्डार को उपयोग करने वाले बहुत ही कम हैं। सारी दुनिया संगणकीकृत (Computerized) हो रही हैं। इसी तरह यह पुस्तकरूपी श्रव्यरूपी दृश्यरूपी ज्ञान भण्डार भी संगणकीकृत (Computerized) ज्ञान भण्डार हो रहा हैं और उसी का उपयोग अधिकतर लोग करते हैं। इसीलिए हम विशाल संस्कृत वाङ्मय को संगणकीकृत (Computerized) रूप में एकत्रित करने का प्रयास कर रहे हैं। किन्तु यह काम तो पहले ही बहुत सारे लोग अपने-अपने विषय को लेकर कर चुके हैं। तो इस जालपत्र (website) की क्या विशषता हैं, यह जालपत्र (website) क्यों हैं इन प्रश्नों के समाधान हमारे जालपत्र को देखने से सबको मिल जायेंगे। यहाँ सभी जालपत्रों में स्थपित महत्वपूर्ण सूचनाओं को सङ्गृहित कर सबके समक्ष परोसा हैं। ऐसा करते समय स्थान की अनुपलब्धता एवं दोबारा परिश्रम को टालने के लिए हमने सभी जालपत्रों के पतें (links) मात्र एकत्रित किये हैं। जिस से एक नीडात्मक इस जालपत्र (website) में संस्कृत के सर्व विध विषय सम्मिलित हो सकें। इस जालपत्र (website) में अणुपुस्तकालय, चलचित्रावलि, श्रव्यावलि, शब्दकोश आदि विभाग सङ्ग्रह के कारण समृद्ध होंगे। इस के अलावा प्रयास पूर्वक ध्वनि, शुभाशय, नामावलि, हास्यकण आदि विभाग विशेष होंगे।