संस्कृतविश्वम्
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अनेक शास्त्रं बहु वेदितव्यम् अल्पश्च कालो बहवश्च विघ्ना: यत् सारभूतं तदुपासितव्यं हंसो यथा क्षीरमिवाम्भुमध्यात् ।


अनेक शास्त्रं बहु वेदितव्यम् अल्पश्च कालो बहवश्च विघ्ना: ।
यत् सारभूतं तदुपासितव्यं हंसो यथा क्षीरमिवाम्भुमध्यात् ।।
पढने के लिए बहुत शास्त्र हैं और ज्ञान अपरिमित है| अपने पास समय की कमी है और बाधाएं बहुत है। जैसे हंस पानी में से दूध निकाल लेता है उसी तरह उन शास्त्रों का सार समझ लेना चाहिए।


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संस्थायाः अन्य योजना

वैदिकसाहित्य की डाटावेज पुस्तकालय निर्माण परियोजना

प्रस्तावना –
प्राचीन भारतीय संस्कृति के आधार वैदिकसाहित्य के ग्रन्थ हैं । वैदिक साहित्य वर्तमान में भारत की नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व की धरोहर है । यूनेस्को का ऋग्वेद की पाण्डुलिपि को विश्व का सर्व प्राचीन उपलब्ध ग्रन्थ के रूप में मान्यता प्रदान करने से भी वैदिक साहित्य को विश्व की संस्कृति के पुरातनतम सुदृढ़ स्तम्भ के रूप में प्रामाणिकता प्राप्त हुई है ।
प्राक्कल्पना –
वैदिक साहित्य की उपलब्धता और अनुपलब्धता पर निश्चयात्मक जानकारी जुटाना एक महत्त्वपूर्ण कार्य है । उसके साथ ही उपलब्ध वैदिक साहित्य की सुरक्षा दृष्टि से दायित्त्व बोध तथा पोषण एवं संवर्धन भारतीयों का अनिवार्य सामाजिक दायित्त्व है ।
सर्वप्रथम वैदिक साहित्य के ग्रन्थ अन्तर्जाल पर जहां कहीं वेबसाईटों पर जिस किसी फार्मेट में उपलब्ध हो उनका संग्रहण किया जाना चाहिए । साथ ही उन ग्रन्थों को एवं उपलब्ध फार्मेट का परिचयात्मक सूचना प्रदान करनी चाहिए । पुनः अन्यशेष वैदिकसाहित्य के ग्रन्थों की स्केन कॉपी (प्रारम्भिक स्तर पर) दी जानी चाहिए । वैदिक साहित्य से सम्बन्धित पुस्तकों की परिचयात्मक सूची, वीडियो और ओडियो उपलब्ध कराये जाने हैं ।
विषय चयन औचित्य –
वर्तमान युग में कम्प्यूटर एवं इन्टरनेट सर्वाधिक सरल तरीके से ज्ञान प्राप्त करने का सर्व सुलभ माध्यम है । अतः भारतीय संस्कृति के आधार एवं प्राणभूत वैदिक साहित्य को जिज्ञासु मनुष्यमात्र को उपलब्ध कराना बहुत आवश्यक है । जिससे भारतीय संस्कृति के महत्त्व को सर्वजन सुलभ कराया जा सके । वैदिक साहित्य के ग्रन्थ आज बड़े-बड़े पुस्तकालयों, विश्वविद्यालयों एव पाण्डुलिपि संग्रहालयों में एकत्रित करके रखा हुए हैं । जहां तक पहुँच पाना एक जिज्ञासु के लिए नहीं अपितु शोधार्थी के लिए भी अत्यन्त कठिन हो जाता है । अपेक्षित कोई ग्रन्थ एक पुस्तकालय में प्राप्त होता है तो दूसरा कहीं और होता है और कई बार वह अपेक्षित ग्रन्थ कहाँ पर है यह भी ज्ञान न हो पाने के कारण शोधकार्य में अपेक्षित सन्तुष्टि नहीं मिल पाती है । साथ ही वे ग्रन्थ पाठकों के अभाव में उपेक्षित रखे हुए पुस्तकालयों कई बार शोभा मात्र होते हैं और कई स्थानों पर भारभूत मानकर उनकी उपेक्षा कर दी जाती है जिससे उनकी सुरक्षा खतरे में पड़ जाती है तथा कई बार प्राकृतिक बाढ़ आदि के कारण जल भराव में वे ग्रन्थ नष्ट हो जाते हैं ।
अतः इन ग्रन्थों को सॉफ्ट कॉफी में सुरक्षित नहीं जाना तथा सर्वजन सुलभ कराने के लिए इस परियोजन में कार्य करना समाजोपयोगी है ।
परियोजना में कार्य की विधि –
इस परियोजना में कई स्तरों पर कार्य किया जाएगा ।
1. प्रथम स्तर जहाँ कहीं भी सॉफ्ट कॉपी के रूप में वैदिक साहित्य उपलब्ध है उसे प्राप्त करने का कार्य करना है ।
2. उस प्राप्त सॉफ्ट कॉपी के रूप में उपलब्ध वैदिक साहित्य के ग्रन्थों का आन्तरिक परीक्षण किया जायेगा ।
3. उन सॉफ्ट ग्रन्थों यदि सन्तुष्टि जनक स्थिति में है तो उनका संग्रह करके सॉफ्ट फार्मेट का विवरण एवं विषय वस्तु का
संक्षिप्त परिचय प्रयोक्ता के सुविधा हेतु लेखन कराया जाएगा ।
4. द्वितीय स्तर में जो ग्रन्थ सॉफ्ट कॉपी में उपलब्ध नहीं है उनकी सॉफ्ट कॉपी तैयार कराई जाएगी ।
5. तैयार कराई हुई सॉफ्ट कॉपी का फार्मेट विवरण एवं विषय वस्तु का संक्षिप्त परिचय का लेखन कराया जाएगा ।
6. इस प्रकार प्रथमस्तर एवं द्वितीयस्तर पर संग्रहित वैदिक साहित्य के ग्रन्थों की सॉफ्ट कॉपी को वेबसाइट पर अपलोड किया जाएगा ।

पूर्व कार्यों का अवलोकन –

इस समय तक लगभग 20 वेबसाईटों पर उन कार्यकर्ताओं ने अपनी रुचि एवं अपने महत्त्व के अनुसार वैदिक साहित्य के कुछ-कुछ ग्रन्थ अपलोड किए हुए हैं – जैसे महर्षि महेश योगी संस्था की वेबसाइट ने सर्वाधिक वैदिक साहित्य के ग्रन्थ अपलोड किए हुए हैं । वे टाईप कराकर अपलोड किए हैं । ये बहुत ही श्रमसाध्य और व्ययसाध्य तथा प्रशंसनीय कार्य है किन्तु टाईप के बात निरीक्षण के अभाव में टंकण त्रुटियों का संशोधन नहीं हो पाया । जिससे उन अपलोड किए हुए वैदिक साहित्य के ग्रन्थों की प्रामाणिकता संदिग्ध हो जाती है । जर्मनी की एक वेबसाइट ने तथा राष्ट्रिय संस्कृत संस्थान ने शुद्ध स्थिति में ग्रन्थों को अपलोड किया है किन्तु वे अत्यल्प हैं । एक वेबसाईट जामनगर गुजरात की आर्यसमाज की है जिसमें स्वामी दयानन्द के वेदभाष्य अपलोड किए हैं जो स्कैन अपलोड किए हैं । इसी तरह अन्य भी कुछ वेबसाइट है जिन्होंने वैदिक साहित्य के ग्रन्थों को वेबसाइट पर अपलोड किया । यहाँ पर कुछ साईटों का संकेतमात्र किया गया हैं ।
समाजोपयोगिता (लोकोपकारित्वम्) –

इस परियोजना में कार्य किए जाने से अन्तराष्ट्रिय स्तर पर वैदिक साहित्य सर्वजन सुलभ हो जाएँगे एवं प्रामाणिक ग्रन्थों का अभाव कुछ हद तक समाप्त हो जाएगा । साथ ही शोधार्थी सम्पूर्ण विश्व में जहाँ कहीं बैठ कर इस अपलोड किए हुए ग्रन्थों का यथारुचि सुलभ रूप से उपयोग कर सकेगा । वैदिक साहित्य के ग्रन्थ सुरक्षित स्थिति में उपलब्ध रहेंगे । समाज के सामने वैदिक साहित्य में स्थिति मनुष्य मात्र के हितकारी तथ्यों का और अधिक प्रचार-प्रसार करने में सहायता मिलेगी और गति प्रदान होगी तथा समाज का और अधिक कल्याण किया जा सकेगा ।

परियोजना के लिए आवश्यक वित्तीय सहायता (वार्षिक)–

मद आकलित व्यय
1. परियोजना सहायक – (15000×12) 1,80,000
2. इन्टरनेट ,विद्युत् व्ययादि – 15,000
3. कम्प्यूटर मेन्टिनेन्स – 36,000
4. कम्प्यूटर ओपरेटर – (8000×12) 96,000
5. यात्रा व्यय – 15,000
6. आकस्मिक व्यय (Contingency) – 25,000
कुल योग = 3,67,000

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