येऽपि शब्दविदो नैव नैव चार्थविचक्षणाः ।
तेवामपि सतां पाठऋ सुष्ठुः कर्णरसायनम् ।।
काव्यमीमांसा अ. ७, पृ. ७९
जो न तो शब्द के ज्ञाता होते हैं और न अर्थ के सर्मज्ञ,
उनके काव्य पाठ भी सुखद लगते हैं और श्रवण योग्य होते हैं ।
येऽपि शब्दविदो नैव नैव चार्थविचक्षणाः ।
तेवामपि सतां पाठऋ सुष्ठुः कर्णरसायनम् ।।
काव्यमीमांसा अ. ७, पृ. ७९
जो न तो शब्द के ज्ञाता होते हैं और न अर्थ के सर्मज्ञ,
उनके काव्य पाठ भी सुखद लगते हैं और श्रवण योग्य होते हैं ।