नागो भाति मदेन कं जलरुहैः पूर्णेन्दुना शर्वरी।
शीलेन प्रमदा जवेन तुरगो नित्योत्सवैर्मन्दिरम्।।
वाणी व्याकरणेन हंसमिथुनैर्नद्यः सभा पण्डितैः
सत्पुत्रेण कुलं नृपेण वसुधा लोकत्रयं विष्णुना।।
नागः मदेन भाति – हाथी मद से शोभित होता है
कं जलरुहैः भाति – पानी कमलों से शोभित होता है
शर्वरी पूर्णेन्दना भाति – रात पूर्णचन्द्रमा से शोभित होता है
प्रमदा शीलेन भाति – स्त्री शील से शोभित होता है
तुरगः जवेन भाति – घोड़ा वेग से शोभित होता है
मन्दिरं नित्योत्सवैः – घर प्रतिदिन के उत्सवों से शोभित होता है
वाणी व्याकरणेन भाति – वाणी व्याकरण से शोभित होती है
नद्यः हंसमिथुनैः भन्ति – नदियाँ हँसों के जोडे से शोभित होती हैं
सभा पण्डितैः भाति – सभा पण्डितों से शोभित होती है
कुलं सत्पुत्रेण भाति – कुल अच्छे पुत्र से शोभित होता है
वसुधा नृपेण भाति – पृथ्वी राजा से शोभित होती है (तथा)
लोकत्रयं विष्णुना भाति – तीनों लोक विष्णु से शोभित होते हैं।
पूर्णेन्दुना (पूर्णेन्दु- पुं0 तृ0 ए0) नद्यः (नदी स्त्री0 प्र0 ब0) विष्णुना (विष्णु-पु0 तृ0 ए0) भाति (भा धातु-अ0 प0)