राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, तिरुपति,तिरुमला पर्वत के पादतल में स्थित यह राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ गत चार दशकों से संस्कृत के अध्ययन एवं अध्यापन की दृष्टि से छात्रों एवं विद्वानों का लक्ष्य हो गया है। यहाँ देश के विभिन्न भाग से विभिन्न धर्म जाति एवं भाषा के छात्र आते हैं जिससे यह विद्यापीठ एक घोटे भारत की तरह दिखता है। यहाँ अध्ययन एवं अनुसंधान के लिए उत्कृष्ट सुविधा एव अत्यन्त अनुकूल वातावरण उपलब्ध है।नए पाठ्यक्रम,भव्य भवन्,कम्प्यूटर आदि आधुनिक उपसाधनों ने संस्कृत अध्ययन –अध्यापन के क्षेत्र में इस विद्यापीठ को उन्नत बना दिया है। तिरुपति शहर के मध्यभाग में अवस्थित विद्यापीठ परिसर विशाल तरु छाया,सुन्दर बगीचे एवं मनोहर वन से अत्यंत आकर्षणीय लगता है।
स्थापना: भारत सरकार द्नारा गठित केन्द्रीय संस्कृत आयोग की 1950 वर्ष में अनुशंसा पर पारंपरिक संस्कृत की आधुनिक शोध शैली के प्रचार-प्रसार हेतु शिक्षा मंत्रालय द्वारा तिरुपति में केन्द्रीय संस्कृत विद्यपीठ तथा उसकी प्राशासनिक व्यवस्था हेतु सरकार ने केन्द्रीय संस्कृत विद्यापीठ तिरुपति सोसाइटी नाम से एक स्वायत्त संस्था का पंजीकरण कराया।विद्यापीठ का शिलान्यास 4 जनवरी,1962 को तत्कालीन उपराष्ट्रपति डा.सर्वेपल्लि राधाकृष्णन् ने किया।
तिरुमला-तिरुपति-देवस्थान ट्रस्ट बोर्ड के तत्कालीन कार्यनिर्वहणाधिकारी डा.सी.अन्नाराव् जी ने बयालिस एकड जमीन तथा भवन निर्माण हेतु 10 लाख रुपये दिये थे।
सुविख्यात विद्वान् एवं राजनेता भारत के पूर्वमुख्य न्यायाधीश पतंजलि शास्त्री विद्यापीठ सोसाइटी के अध्यक्ष रहे हैं।उसके बाद प्राच्यविद्या के प्रसिद्धविद्वान् पी.राघवन् तथा लोकसभा के भूतपूर्व अध्यक्ष श्री एम्.अनन्तशयनंअय्यंगार् जी अध्यक्ष हुए।डा.बी.आर्.शर्मा जी ने 1962-1970 तक प्रथम निदेशक के रूप मे काम किया हैं।श्री वेंकट राघवन्, डा.मण्डनमिश्र,डा.आर्.करुणाकरन्,डा.एम्.डी.बालसुब्रह्मण्यम् एवं प्रो.एन.एस.रामानुज ताताचार्य ने क्रमशःप्राचार्य के रूप में अपने वैदुष्य एवं प्राशासनिक अनुभव से इस विद्यापीठ की सेवा की।
केन्द्रीय संस्कृत विद्यपीठ अप्रैल,1971 को राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान के संरक्षण में शिक्षा मंत्रालय की स्वायत्त संस्था का रूप दिया गया।रजत जयंती महोत्सव के दौरान वर्ष 1987 में श्री पी.वी.नरसिंहाराव जी भारत सरकार के तत्कालीन केन्द्रीय मानवसंसाधन विकास मंत्री ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के यी.जी.सी, अधिनियम 1956 के अनुभाग 3(राजपत्र अध्यादेश नं.एफ.9-2य85 यु-3, 16-11-1987)के अनुसार विद्यापीठ को मानित विश्वविद्यालय घोषित किया। मानित विश्वविद्यालय का औपचारिक रूप से उद्घाटन तिनांक 26-08-1989 को तत्कालीन राष्ट्रपति श्री आर.वेंकटरामन् के द्वारा किया गया।विद्यापीठ ने शैक्षणिक सत्र 1991-92से मानित विश्वविद्यालय के रूप में काम करणा शुरू किया।उस समय से अतेयंत प्रतिष्ठित व्यक्ति जैसे पं.श्री पट्टाभिराम शास्त्रि,प्रो.रमारंजन मुखर्जी और डा.वि.आर,पंचमुखी इस विद्यपीठ के कुलाधिपति रहे हैं।प्रो.एन्.एस्.रामानुज ताताचारय,प्रो.एस्.बी,रघुनाथाचार्य और प्रो. डी.प्रह्लादाचार ने क्रम से 1989 से 1994; 1994 से 1999 और 1999 से 2004 तक कुलपति के रूप में इस विद्यापीठ कीसेवा की है। तिनांक16.06.2008 से अस्साम के राज्यपाल प्रज्ञान वाचस्पति डा. जानकी वल्लभ पट्टनायक जी विद्यापीठ के कुलाधिपति पद पर विराजमान है।प्रो.हरेकृष्ण शतपथी जी विश्वविद्यालय केकुलपति हैं,वे 19 अप्रैल, 2006 को कुलपति रद का कार्यभार ग्रहण किए हैं।अध्ययन-अध्यापन,शोध,प्रकाशन तथा संस्कृत के संरक्षण एवं प्रचार प्रसार के क्षेत्र में विद्यापीठ की उपलब्धियों को तेखते हुए विद्यापीठ को निम्न उपाधियों से प्रोत्साहित एवं अलंकृत किया गया है।
पाठ्यक्रम (नियमित)
संस्कृत पढनेवाले छात्रों के लिए विद्यापीठ औपचारिक अध्यापन, व्यावसायिक एवं अनौपचारिक रुप से कई पाठ्यक्रम प्रस्तुत करता है। निम्न पाठ्यक्रमों को चलाया जा रहा है ।
स्नातक पाठ्यक्रम
- प्राक-शास्त्री (इंटरमीडियट के समकक्ष), 2.शास्त्री (बी.ए.समकक्ष), 3. शास्त्री वेदभाष्य (बी.ए.समकक्ष), 4.बी.ए., 5. बी.एस.सी.
स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम
- आचार्य (एम्.ए)14 शास्त्रों में
- आचार्य संस्कृत में (शाब्दबोध प्रणली तथा भाषा तकनीकी)
- एम.एससी.कम्प्यूटरविज्ञान और भाषा तकनीकी
वि.अ.ए के नवाचारी कार्यक्रम
- स्नातकोत्तर योग चिकित्सा एवं दबाव प्रबंधन डिप्लोम
- तुलनात्मक सौन्दर्य शास्त्र (साहित्य) में पी.जी.डिप्लोमा
साहित्य, व्याकारण, फलित ज्योतिष, सिद्धांत ज्योतिष, न्याय, अद्वैत वेदांत,विशिष्टद्वैत वेदांत, वेदांत द्वैतवेदांत, आगम, मीमांसा, धर्म शास्त्र, सांख्य योग,पुरानेतिहास, वेदभाष्यम्
शोध कार्यक्रम
- एम्.फिल्.(पांडुलिपि शास्त्र और पुरालिपि शास्त्र को मिलाकर12 शास्त्रों में) .
- एम्.फिल् (शिक्षा शास्त्र).
- विद्यावारिधि-(पीएच्.डी.समानांतर) सभी शास्त्रों,साहित्य, शिक्षा शास्त्र .
- विद्यावाचस्पति (डि.लिट्.समानांतर) सभी शास्त्रों और शिक्षा में
वृत्तिक पाठ्यक्रम
- A)शिक्षा शास्त्री (बी.एड्.समानांतर)
- b)शिक्षा आचार्य (एम्.एड्.समानांतर)
स्नातकोत्तर डिप्लोमा पाठ्यक्रम
योग विज्ञान, प्राकृति भाषा संसाधन, वेब तकनीकी
डिप्लोमा पाठ्यक्रम
मंदिर संस्कृति, पौरोहित्य, संस्कृत एवं कानून डिप्लोमा, प्रबंधन और प्राच्य अभिविन्यास
प्रमाणपत्र पाठ्यक्रम
मंदिर संस्कृति, पौरोहित्य, प्रयोजनमूलक अंग्रेजी, ज्योतिष, ई-अधिगम
विद्यापीठ के निम्न वृत्ति अभिविन्यास कार्यक्रम
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के वित्तीय सहायता से चलाए जानेवाले पाठ्यक्रम भारतीय भाषाओं में डी.टी.पी, वेब तकनीकी शास्त्र, पुरणोतिहास, वास्तु शास्त्र, संस्कृत और क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद तकनीक और रचनात्मक लेकन
पाठ्यक्रमों की पेशकश: दूरस्थ शिक्षा निदेशालय (डीडीई)
पाठ्यक्रम की पेशकश की डीडीई प्रणाली के तहत
- प्राक्-शास्त्री (इंटरमीडियट के समाकक्ष)
- शास्त्री(बी.ए.)
- बी.ए. (संस्कृत्)
- आचार्य (एम.ए.)
- सहित्य, 2.ज्योतिष, 3. व्याकरण, 4. वेदांत, 5. न्याय, 6. आगम, 7. धर्मशास्त्र, 8. पुराणेतिहास
मुक्त विश्वविद्यालय प्रणाली के तहत
- संस्कृत में सर्टिफिकेट कोर्स (6महीने)
- संस्कृत में डिप्लोमा कोर्स (1वर्ष)
- योग विज्ञान में स्नातकोत्तर डिप्लोम (1वर्ष)
- आचार्य (एमए) खुला विश्वविद्यालय प्रणाली (2वर्ष – वर्ष बार योजना)
जालपत्र