परिचय
भारत सरकार ने संस्कृत आयोग (1956-1957) की अनुशंसा के आधार पर संस्कृत के विकास तथा प्रचार-प्रसार हेतु संस्कृत सम्बद्ध केन्द्र सरकार की नीतियों एवं कार्यक्रमों के क्रियान्वयन के उद्देश्य से 15 अक्तूबर 1970 को एक स्वायत्त संगठन के रूप में राष्ट्रिय संस्कृत संस्थान की स्थापना की। 7 मई, 2002 को मानव संसाधन विकास मन्त्रालय, भारत सरकार ने इसे बहुपरिसरीय मानित विश्वविद्यालय के रुप में घोषित किया।
राष्ट्रिय संस्कृत संस्थान देश का एकमात्र बहुपरिसरीय बृहत्तम संस्कृत विश्वविद्यालय है।
उद्देश्य
राष्ट्रिय संस्कृत संस्थान के संस्था के बहिर्नियम (Memorandum of Association) में घोषित उद्देश्य इस प्रकार है-
संस्थान की स्थापना के उद्देश्य पारम्परिक संस्कृत विद्या व शोध का प्रचार, विकास व प्रोत्साहन है और उनका पालन करते हुएः-
1. संस्कृत विद्या की सभी विधाओं में शोध का आरम्भ, अनुदान, प्रोत्साहन तथा संयोजन करना है, साथ-साथ शिक्षक-प्रशिक्षण तथा पाण्डुलिपि विज्ञान आदि को भी संरक्षण देना जिससे पाठमूलक प्रासंगिक विषयों में आधुनिक शोध के निष्कर्ष के साथ सम्बन्ध स्पष्ट किया जा सके तथा इनका प्रकाशन हो सके।
2. देश के विविध भागों में केन्द्रीय संस्कृत परिसरों की स्थापना, अधिग्रहण तथा संचालन करना और समान उद्देश्यों वाली अन्य संस्थाओं को संस्थान से सम्बद्ध करना।
3. केन्द्रीय प्रशासनिक संकाय के रूप में इसके द्वारा स्थापित अथवा अधिगृहीत समस्त केन्द्रीय संस्कृत विद्यापीठों का प्रंबन्धन तथा उनकी शैक्षणिक गतिविधियों में अधिकाधिक प्रभावी सहयोग करना जिससे विशिष्ट क्षेत्रों में विद्यापीठों के बीच कर्मचारियों, छात्रों व शोध और राष्ट्रिय कार्य-विभाजन के अन्तर्बदल और स्थानान्तरण को सुसाध्य एवं तर्कसंगत बनाया जा सके।
4. संस्कृत के संवर्धनार्थ भारत सरकार के केन्द्रीय अभिकरण (Nodal Agency) के रूप में उनकी नीतियों एवं योजनाओं को लागू करना।
5. उन शैक्षणिक क्षेत्रों में अनुदेश एवं प्रशिक्षण का प्रबन्ध करना जो निर्धारित मानदण्डों को पूरा करते हों और संस्थान जिन्हें उचित समझता हो।
6. शोध एवं ज्ञान के प्रसार एवं विकास के लिए समुचित मार्गदर्शन एवं व्यवस्था करना।
7. प्राचीर-बाह्य (Extra-mural) अध्ययन, विस्तारित योजनाएँ एवं दूरस्थ क्रिया-कलाप जो समाज के विकास में योगदान देते हों, उनका उत्तरदायित्व लेना।
8. इसके अतिरिक्त उन सभी उत्तरदायित्वों एवं कार्यो का निष्पादन करना जो संस्थान के उद्देश्यों को आगे बढाने के लिए आवश्यक या वांछित हो।
9. पालि तथा प्राकृत भाषा का विकास करना।
संरचना
राष्ट्रिय संस्कृत संस्थान का संचालन अधोलिखित के द्वारा किया जाता है-
अध्यक्ष (President)
प्रबन्धन परिषद् (Academic Council)
विद्या परिषद् (Academic Council)
योजना एवं प्रबोधन परिषद् (Planning and monitoring Board)
वित्त समिति (Finance Committee)
केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मन्त्री संस्थान का कुलाध्यक्ष (President) होता है। प्रबन्धन
परिषद संस्थान की सर्वश्रेष्ठ नीति-निर्धारक परिषद है। राष्ट्रिय संस्कृत संस्थान का कुलपति जो
प्रबन्धन परिषद का अध्यक्ष होता है, संस्थान का मुख्य शैक्षणिक एवं प्रशासनिक अधिकारी है।
वर्तमान में राष्ट्रिय संस्कृत संस्थान नई दिल्ली मुख्यालय परिसर के अतिरिक्त अखिल भारतीय स्तर पर दस परिसर हैं। संस्थान मुख्यालय शैक्षणिक, शोध एवं प्रकाशन, पत्राचार एवं अनौपचारिक संस्कृत शिक्षण, परीक्षा, योजना, प्रशासन तथा वित्त विभागों के माध्यम से कार्य सम्पादित करता है।
अध्यक्षों के नाम
डा0 मुरली मनोहर जोशी
माननीय मानव संसाधन विकास मंत्री, भारत सरकार 30-7-2002 से 10-6-2004
श्री अर्जुन सिंह
माननीय मानव संसाधन विकास मंत्री, भारत सरकार 11-6-2004 से 21-5-2009
श्री कपिल सिब्बल
माननीय मानव संसाधन विकास मंत्री, भारत सरकार 2-6-2009 से —
कुलपति का नाम
प्रो0 वी0 कुटुम्ब शास्त्री 12-5-2003 से 11-5-2008
डा0 अनिता भटनागर जैन 23-5-2008 से 13-8-2008
प्रो0 राधावल्लभ त्रिपाठी 14-8-2008 से —
अधिकम्
पाठ्यक्रम्
प्रथमा से प्राक् शास्त्री का पाठ्यक्रम
छात्र जो कक्षा V उत्तीर्ण की हो,एवं प्रवेश के वर्ष में पहली अक्टूबर को 10 वर्ष की आयु को पूरा करते हो ,प्रथमा प्रथम वर्ष में प्रवेश दिया जा सकता है प्रथमा में तीन वर्ष अध्ययन के पश्चात छात्र पूर्व मध्यमा में प्रवेश ले सकते है। जॅहा दो वर्ष अध्ययन के पश्चात छात्र उत्तर मध्यमा में प्रवेश ले सकते है।
संस्थान ने प्राक् शास्त्री नाम का एक बफर कोर्स प्रारम्भ किया है जिससे विद्यार्थी ,जो बोर्ड की 10वी की परीक्षा को पास किया हो और संस्कृत की पूर्व में कोई पृष्ठभूमि नहीं हो,दाखिल किया जा सकता है।
प्राक् शास्त्री पाठ्यक्रम में प्रवेश के लिये योग्यता
छात्र जो मान्यताप्राप्त परीक्षामंडल की दशम कक्षा उत्तीर्ण की हो । संस्कृत के अभाव में प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण की हो ।
संस्थान के समकक्ष परीक्षा
संस्थानम् परीक्षा आधुनिक शिक्षा में संस्थान के समकक्ष परीक्षा
प्राक् शास्त्री सीनियर सेकेण्डरी
प्रथम वर्ष XI
व्दितीय वर्ष X
विषय
प्रथमा
(1). व्याकरण
(2). साहित्य
(3). हिन्दी/अन्य क्षेत्रीय भाषा
(4). अंग्रेजी
(5). सामाजिक विज्ञान
(6). गणित/ज्यौतिष बौध्ददर्शन
(7) विज्ञान/गृह विज्ञान/कला/दर्शन
पूर्व मध्यमा
(1-5 तक प्रथमा के समान)
(6). गणित/कला /गृह विज्ञान /संगीत
(7). विज्ञान /साहित्य /व्याकरण /दर्शन /ज्यौतिष.
उत्तर मध्यमा/प्राक् शास्त्री
(1-4 तक पूर्व मध्यमा के समान)
(5). अर्थशास्त्र/इतिहास/राजनीति विज्ञान/समाजशास्त्र/जीवविज्ञान/गणित/भूगोल.
(6). वेद/व्याकरण /साहित्य/ज्यौतिष/दर्शन
शास्त्री
छात्र जो उत्तरमध्यमा या प्राकशशास्त्री या समकक्ष परीक्षा संस्कृत में उत्तीर्ण की हो, शास्त्री में प्रवेश के लिये अर्ह हैं जो त्रिवर्षीय पाठ्यक्रम हैं। यह आधुनिक शिक्षा में बी.ए.(आनर्स) संस्कृत के समकक्ष पाठ्यक्रम हैं।
पाठ्यक्रम में प्रवेश के लिये योग्यता
छात्र जो संस्थान की उत्तरमध्यमा या प्राकशशास्त्री या समकक्ष परीक्षा(10+2) किसी मान्यता प्राप्त बोर्ड से संस्कृत के साथ उत्तीर्ण की हो ।
संस्थान के समकक्ष परीक्षा
संस्थानम् परीक्षा आधुनिक शिक्षा में संस्थान के समकक्ष परीक्षा
शास्त्री बी.ए./ बी.ए.(आनर्स)
प्रथम वर्ष संस्कृत
व्दितीय वर्ष संस्कृत
तृतीय वर्ष संस्कृत
विषय
(I). व्याकरणम्(प्रथम वर्ष) , साहित्य (व्दितीय वर्ष), दर्शन (तृतीय वर्ष)
(II). अंग्रेजी
(III). हिन्दी/अन्य क्षेत्रीय भाषा
(IV). राजनीति विज्ञान/दर्शन/इतिहास/अर्थशास्त्र/समाजशास्त्र/हिन्दी भाषा/ अंग्रेजी भाषा
(V+VI). व्याकरण/प्राचीन व्याकरण/साहित्य/सर्वदर्शन/सिध्दान्त-ज्यौतिष/फलित-ज्यौतिष/नव्य-न्याय/मीमांसा/अघ्दैत वेदान्त/ धर्मशास्त्र/विशिष्टाव्दैतवेदांत/सांख्ययोग पौरोहित्यम् /शुक्लयजुर्वेद /रामानन्दवेदांत /जैनदर्शन /पुराणेतिहास /बौध्ददर्शन .
1. उपरोक्त लिखे 18 विषयों में से अपनी इच्छा से एक शास्त्रीय विषय ले सकते हैं।प्रत्येक शास्त्रीय विषय के दो पत्र होंगे-पंचम एवं षष्
2. जो विषय प्रथम वर्ष में लिया गया हैं वही व्दितीय एवं तृतीय वर्ष में भी लेना होगा।
जालपत्र