परिचय
संस्थान में निम्न अधिकारी / कर्मचारी सम्प्रति कार्यरत हैं।
अध्यक्ष – 01
निदेशक – 01
वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी – 01
प्रशासनिक अधिकारी – 01
सर्वेक्षक – 02
प्रधान सहायक – 01
सहायक पुस्तकालयाध्यक्ष – 01
सहायक लेखाकार – 01
आशुलिपिक – 01
वरिष्ठ सहायक – 01
टंकक – 01
वाहन चालक – 01
जेनिटर पुस्कालय – 01
अर्दली – 01
चपरासी – 01
चौकीदार – 01
माली – 01
सन्देश वाहक – 02
सफाई कर्मचारी – 01
उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान द्वारा अपनी समस्त योजनाओं के क्रियान्वयन हेतु समाचार पत्र में विज्ञापन दिया जाता है। उसके अनुसार प्राप्त आवेदन पत्रों पर उच्च स्तरीय समिति द्वारा निर्णय लिया जाता है। उ० प्र० संस्कृत संस्थान द्वारा संस्कृत के उत्थान के लिए कई योजनाएं चलाई जा रही हैं। जिनका विवरण महत्वपूर्ण गतिविधियों के अर्न्तगत दिया गया है।
सम्पर्क सूत्रउत्तर-प्रदेश-संस्कृत-संस्थानम्रायबिहारी लाल मार्ग,‘संस्कृतभवनम्’, नया हैदराबाद,लखनऊ – 91-0522-2780251फैक्स – 91-0522-2781352ई-मेल : upsanskritsansthanam@yahoo.com
परिचय उत्तराखण्ड संस्कृत अकादमी
सम्पूर्ण विश्व में देवभूमि के नाम से विख्यात उत्तराखण्ड का सम्बन्ध देववाणी संस्कृत से प्राचीन काल से ही रहा है। वेद, उपनिषद, रामायण, महाभारत, पुराण, धर्मस्मृतियां आदि हमारे सभी धार्मिक ग्रन्थ संस्कृत भाषा में लिखे हुए हैं। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार 18 पुराणों की रचना महर्षि वेदव्यास ने उत्तराखण्ड के प्रसिद्व बद्रीनाथ धाम के समीप माणागाँव में की थी। वहाँ पर स्थित व्यास गुफा आज भी इसकी साक्षी है।कविकुलगरु महाकवि कालिदास का प्रारम्भिक जीवन उत्तराखण्ड की पहाडि़यों (कविल्ठा ग्राम, रुद्रप्रयाग) पर बीता है इस विषय में सभी संस्कृत विद्वान् एकमत हो रहे हैं। देवतात्मा हिमालय का सौन्दर्य एंव सुषमा उनके काव्यों एवं नाटकों में स्पष्ट परिलक्षित होता है। उत्तराखण्ड में बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री एंव यमुनोत्री पवित्र चार धामों सहित अनेक मठ एवं मन्दिरों में नित्य पूजा, पाठ, भजन, कीर्तन एवं प्रवचनादि संस्कृत भाषा में ही सम्पादित होते हैं। उत्तराखण्ड में 90 संस्कृत विद्यालय एवं महाविद्यालय है जहाँ अध्ययन एवं अध्यापन का कार्य संस्कृतभाषा में ही सम्पन्न होता है। कहने का तात्पर्य यह है कि देवभूमि उत्तराखण्ड से ही संस्कृत ज्ञानगंगा धारा भारत भूमि को पवित्र करती हुई सम्पूर्ण विश्व में प्रवाहित हुई थी।
संस्कृत भाषा का महत्व केवल आध्यात्मिक दृष्टि से ही नहीं अपितु वैज्ञानिक दृष्टि से भी है। हमारे वेदों में ज्ञान के साथ-साथ विज्ञान भी प्रचुर मात्रा में विद्यमान है। गुरुत्वाकर्षण के सिद्वान्त का प्रतिपादन न्यूटन से भी 500 वर्ष पूर्व भास्कराचार्य ने किया था। वायुयान का आविष्कार राइट बन्धु से पूर्व महर्षि भारद्वाज द्वारा प्रणीत यन्त्रसर्वस्व के वैमानिक प्रकरण का अध्ययन कर सन् 1865 में तारापाण्डे दम्पती ने मरुत्सवा नामक सौर उर्जा से उड़ने वाला विमान यन्त्र बनाया था। रदर फोर्ड से भी एक हजार वर्ष पूर्व महर्षि कणाद ने अपने वैशेषिक दर्शन में परमाणुवाद का विवेचन किया है।
इसी प्रकार पाई का मान, पृथ्वी की परिभ्रमण गति, शून्य, दशमलव आदि ऐसे अनेक वैज्ञानिक व गणितीय विकास के आधार स्तम्भ हैं जिनकी खोज भारतीयों ने की थी किन्तु हम उन्हें विदेशियों के आविष्कार के रूप में ही जानते हैं। संसार में भारत को विश्वगुरु की पहचान संस्कृत भाषा के कारण ही मिली थी। विदेश में हुए एक शोध के दौरान यह पाया कि अन्य भाषा बोलने वालों की अपेक्षया संस्कृत बोलने वालों का मस्तिष्क अधिक तीवव्रगति से कार्य करता है। इन सभी विषयों के अतिरिक्त सर्वाधिक महत्वपूर्ण तथ्य ’मानव कल्याण’ का मार्ग भी इसी भाषा से प्रशस्त होता है। न केवल मानव कल्याण, समाज कल्याण अपितु, विश्व कल्याण भी इसी ही भाषा में निहित है। सम्पूर्ण विश्व को एकता के सूत्र में बाँधने में केवल यही भाषा समर्थ है। यही कारण है कि प्रो0 बाप, ड्यूबोई, प्रो0 मैक्डोलन, मैक्स मूलर आदि पाश्चात्य भाषा वैज्ञानिकों ने मुक्त कण्ठ से संस्कृत को सभी भाषाओं की जननी एवं वृद्धिकारक माना है। प्रसिद्ध भाषाविद् प्रो0 विल ड्यूराँ ने कहा है कि ’भारत मानवजाति की जन्मभूमि है और संस्कृत यूरोपीय भाषाओं की जननी है
संस्कृत की वैज्ञानिकता को ध्यान में रखकर ही डॉo भीमराव अम्बेडकर ने भारतीय संघ की राजभाषा के रूप में संस्कृत का समर्थन किया था। इन सब विषयों के अतिरिक्त हिन्दू धर्म में संस्कृत का महत्व इसलिए भी है कि जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त वे सभी सोलह संस्कार इसी भाषा में सम्पादित होते हैं जिनके द्वारा मनुष्य वैयक्तिक एवं सामाजिक दृष्टि से उपयोगी बनता है एवं लौकिक एवं पारलौकिक दृष्टि से भी सफलता की ओर अग्रसर होता है।
उत्तराखण्ड संस्कृत अकादमी की स्थापना
देववाणी की पावन धारा बहाकर सम्पूर्ण विश्व को पवित्र करने वाली इस उत्तराखण्ड की भूमि में पुनरपि संस्कृतभाषा अपने पुरातन वैभव को प्राप्त करे इस उद्देश्य से वर्ष 2002 में तत्कालीन माo मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी की अध्यक्षता में उत्तराखण्ड शासन द्वारा शासनादेश संख्या-1249/उ0शि0/2002 दिनांक 20-12-2002 द्वारा उत्तराखण्ड संस्कृत अकादमी की स्थापना की गयी।
सम्पर्क सूत्र
रानीपुर झाल, ज्वालापुर, हरिद्वार, 249407
उत्तराखंड, भारत
सम्पर्क सूत्र – 0133460666
अणुवाक् – uttaranchal_sanskrit11@rediffmail.com
संस्कृतभाषायाः महत्त्वम् अवलोकयन् राष्ट्रस्य संस्कृतेः सभ्यतायाः भाषायाः साहित्यस्य च संरक्षणं, संवर्द्धनं, प्रचारं, प्रसारं विकासञ्च उद्दिश्य देशस्य राज्यानां च सर्वकाराः राष्ट्रियाखण्डतायाः भाषाणामेकतायाः च प्रतीकभूतायाः संस्कृतभाषायाः संरक्षणाय, प्रचाराय प्रसाराय च सुतरां प्रयत्नशीलाः सन्ति। अनेनैवोद्देश्येन 1987 तमे ख्रीष्टाब्दे दिल्ली-सर्वकारद्वारा स्वायत्तसंस्थारूपेण दिल्ली-संस्कृत-अकादमी संस्थापिता।
स्थापनान्तरं दिल्ली-संस्कृत-अकादमी संस्कृतस्य प्रचाराय प्रसाराय च निरन्तरं गतिशीलास्ति।
उद्देश्यानि
दिल्ली-संस्कृत-अकादम्याः संस्थापनायाः प्रमुखोद्देश्यं संस्कृतभाषायाः संस्कृत-साहित्यस्य च विकास-सम्बद्धानां कार्यक्रमाणां कार्यरूपे परिणतिः।
अस्मिन् विशेषतः दिल्लीस्थानां प्राचीनानां वर्त्तमानानाञ्च उत्कृष्ट-साहित्यानां संकलनम्, परिरक्षणं साहित्यसृजनाय प्रोत्साहनकार्यं च सम्मिलितम् अस्ति।
अकादम्याः उद्देश्यानि निम्नलिखितानि सन्ति–
- संस्कृतभाषायाः साहित्यस्य च उत्थान-प्रचार-प्रसारहेतवे वर्तमानाय भविष्यार्थं च अकादमी अनुदानं प्राप्स्यति। संस्कृतपुस्तकानां प्रकाशनम् तथा च अप्रकाशितानां मूलकृतीनां प्रकाशनम्, सांस्कृतिकः साहित्यिकश्च सन्दर्भकोशः, ज्ञानकोषः इत्यादिकोशानां प्रारम्भिकी शब्दावली, संस्कृतसम्बद्धानां नैकग्रन्थानां विभिन्नभाषासु अनुवादकार्यं च। उक्तकार्यक्रमाणां प्रोत्साहनहेतोः अकादमी स्वसामर्थ्यानुरूपं व्यवस्थां करिष्यति।
- अकादमी राष्ट्रियस्तरे क्षेत्रीयस्तरे च संस्कृतसम्मेलनम्, संगोष्ठीं, परिसंवादं, नृत्यं, नाटकं, काव्यगोष्ठीं, संस्कृतसम्बद्धप्रदर्शनीं, प्रतियोगिताः, संस्कृतेन सम्बद्धसमस्यानां विषये वादविवादान्, गोष्ठीः, विभिन्नभाषाणां तुलनात्मकमध्ययनम् तथा च संस्कृत-संबद्ध-ऐतिहासिक-सांस्कृतिक-शैक्षणिकयात्राः इत्यादीनां विविध-संस्कृत-कार्यक्रमानां व्यवस्थां करिष्यति।
अस्मिन् सम्बन्धे भारतसर्वकारेण यथासमयं संस्कृतभाषायाः प्रचाराय प्रसाराय च दत्तानाम् आदेशानां कार्यन्वयनाय व्यवस्था कल्पिष्यते।
-
- साहित्यकारेभ्यः, तेषामद्भुतसाहित्यिकरचनाभ्यः, संस्कृतक्षेत्रे प्रशंसनीयकार्येभ्यश्च मान्यताप्रदानम्, अथ च पुरस्करणम् इत्यादि-आर्थिक-सहयोगं प्रदातुं व्यवस्थां करिष्यति।
- संस्कृतविद्वद्भ्यः, उच्चशिक्षायै शोधकार्याय च प्रोत्साहनं प्रदास्यति।
- दिल्लीस्थ-विभिन्नक्षेत्रेषु संस्कृतकेन्द्राणां स्थापना, तेभ्यः च पाठ्यपुस्तक- निर्माणम्, केन्द्रेषु अध्ययनरतेभ्यः छात्रेभ्यः प्रोत्साहनप्रदानं च।
- संस्कृतपाठशालानाम् उत्थानाय प्रोत्साहनं, आवश्यकतायां सत्यां तेभ्यः पाठ्यक्रम-पाठ्यपुस्तक-परीक्षादीनां व्यवस्थाकल्पनाय प्रोत्साहनं प्रदास्यति।
- दिल्लीस्थानां वयोवृद्धानां उच्चकोटिकानां साहित्यकाराणां लब्धप्रतिष्ठानां च विदुषां सम्मानकरणम्।
- संस्कृतस्य सर्वश्रेष्ठ-कृतीनां, बालसाहित्यानां च प्रतिवर्षं सम्माननम्।
- येषां कार्यं संस्कृतभाषायाः विकासाय संस्कृत-साहित्यस्य च संवर्द्धनाय महत्त्वपूर्णं भवेत् संस्कृतस्य प्रचारे प्रसारे च कार्यं कुर्वन्तीभ्यः स्वैच्छिक-संस्थाभ्यः-कार्यक्रमेभ्यः, लघुसमाचारपत्र-पत्रिकाभ्यः विज्ञापनमाध्यमेन अनुदान-प्रदानम्।
सम्पर्कम्
दिल्ली-संस्कृत-अकादमी, दिल्लीसर्वकारः
प्लाट नं.-5, झण्डेवालानम्, करोलबागोपनगरम् नवदेहली-110005
नाम, पदनाम, मेल, दूरभाषः
- डॉ० जीतराम भट्टः, सचिवः, bhatt@gov.in, 9990979111,23543930, 23555676, 23681835
- श्री सौरभ मिश्रा, कार्यक्रम-अधिकारी, mishra72@gov.in, 9540989958, 23635592
- श्री प्रद्युम्न चन्द्रः, सहायक-सम्पादकः, 72@gov.in, 9818545114, 23637798
- श्री दिनेश चन्द्र शर्मा, सहायक-प्रचार-प्रसार-अधिकारी, sharma.64@gov.in, 9986024121, 23543930
- श्री रजेश चन्द्र वाजपेयी, सहायक-परियोजना-अधिकारी एवं नोडल-अधिकारी ई-ऑफिस, rajesh.bajpai69@gov.in, 9968261846, 23555676
परिचयः
मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग के सौजन्य से कालिदास अकादमी की स्थापना उज्जैन में सन् 1978 में हुई और वर्ष 1982 से अकादमी के अपने निजी भवन में कार्य संचालित होने लगा। महाकवि कालिदास समूची सांस्कृतिक परम्परा एवं भारतीय चेतना के प्रतीक हैं। कालिदास अकादमी की स्थापना का उद्देश्य केवल महाकवि की अक्षय कीर्ति को सांस्थानिक रूप देने तक सीमित नहीं था, वरन् एक ऐसी आन्तरानुशासनिक संस्था की स्थापना करना था, जो हमारी समूची संस्कृति तथा समस्त शास्त्रीय परम्पराओं को उसकी समग्रता एवं विविध-वर्णिता में अंकित कर सके। कालिदास अकादमी शास्त्रीय साहित्य, शास्त्रीय रंगमंच एवं विभिन्न कला-परम्पराओं के गहन अध्ययन, शोध, अनुशीलन, प्रकाशन एवं प्रयोग के सक्रिय केन्द्र के रूप में कार्यरत है। हमारी सांस्कृतिक पहचान के अन्वेषण तथा सांस्कृतिक विरासत की रक्षा के लिए जो सार्थक प्रयास देश में हो रहे हैं, उसे जीवन्त करने में अकादमी अग्रणी रही है। अकादमी एक स्वायत्त संस्था है, जिसका अपना विधान, कार्यकारिणी एवं सामान्य सभा है। संस्था रजिस्ट्रार ऑफ सोसाइटीज के कार्यालय में पंजीकृत है।
कालिदास संस्कृत अकादमी में संस्कृत अकादमी के विलय होने पर कार्यक्रमों में भारी वृद्धि हुई है। जिसमें वर्णागम शिविर के अलावा चित्रकला में वनजन, समरस के साथ ही अन्य कार्यक्रम जो कि वाल्मीकि समारोह के रूप में चित्रकूट में, राजशेखर समारोह जबलपुर में, भोज समारोह धार में, भवभूति समारोह ग्वालियर में, शंकर समारोह, ओंकारेश्वर में, बाणभट्ट समारोह रीवा में, कल्पवल्ली समारोह उज्जैन में तथा अलग-अलग शहरों में होने वाले कार्यक्रम जैसे शास्त्र व्याख्या पाठसत्र, भर्तृहरि प्रसंग, संस्कृत नाट्य प्रशिक्षण, संस्कृत नाट्य समारोह, बालनाट्यम्, संस्कृत गौरव दिवस, संस्कृत संभाषण शिविर, शास्त्रीय नृत्य प्रशिक्षण शिविर, सारस्वतम् आयोजित किये जाते हैं तथा मई माह में उज्जैन में वृहद स्तर पर ग्रीष्मकालीन प्रशिक्षण शिविर आयोजित किया जाता है।
कालिदास अकादमी निम्नलिखित उद्देश्य की पूर्ति हेतु सक्रिय है –
- कालिदास-साहित्य का विश्लेषण एवं आन्तरानुशासनिक कोणों से शोध एवं अनुशीलन तथा विभिन्न कला-माध्यमों पर उसके समग्र प्रभाव का आकलन।
- कालिदास तथा संस्कृत की अन्य प्राचीन एवं महत्वपूर्ण कृतियों का विभिन्न भाषाओं में अनुवाद तथा प्रकाशन।
- देश-विदेश में कालिदास, नाट्यशास्त्र एवं प्राचीन पाण्डुलिपियों का संकलन, संरक्षण, सम्पादन एवं प्रकाशन।
- शोध-छात्रों के अनुरूप विशाल ग्रन्थालय का विकास।
- कालिदास-साहित्य, नाट्यशास्त्र एवं अन्य प्राचीन शास्त्रों के विश्व की अन्य भाषाओं में उपलब्ध अनुवादों का संकलन।
- शास्त्रीय रंगमंच के विकास एवं प्रयोग के साथ ही रंगकर्मियों के उपयोग के लिए नाट्यशास्त्र व अन्य संस्कृत नाटकों के सम्पादित संस्करणों का हिन्दी-अंग्रेजी अनुवाद व प्रकाशन।
- टेप, वीडियो सीडी/डीवीडी, फिल्म व छायाचित्र के द्वारा महत्वपूर्ण कलारूपों का डाक्यूमेंटेशन।
- शास्त्रीय कलागत पारम्परिक एवं वंशानुगत समग्र मौखिक परम्पराओं का संकलन, संवर्धन, सम्पोषण, प्रयोग-डाक्यूमेंटेशन एवं मोनोग्राफ का प्रकाशन।
- ललितकला, पारम्परिक रंगमंच, लोककला, संगीत, चित्र एवं मूर्तिकला-प्रदर्शनी आदि का आयोजन।
- प्राचीन शास्त्रों के गुरु-शिष्य परम्परा के अनुसार अध्ययन व मनन हेतु आचार्यकुल का विकास।
- भरतमुनि के नाट्यशास्त्र के अनुरूप प्रामाणिक संस्कृत-नाट्य-मण्डप का निर्माण प्रस्तावित, मुक्ताकाशी रंगमंच का विकास।
सम्पर्कम्
Kalidasa Sanskrit Akademi,
University Road,
Ujjain, 456010- MP
Phone- (0734) 2515404
email- kalidasaakademi@gmail.com
परिचयः
संस्कृत तथा उसके साहित्य के अध्यापन क्षेत्र में अनुसंधान ओैर व्यापक अध्ययन को अग्रसर करने के प्रयोजन हेतु स्कूल स्तर पर संस्कृत शिक्षा को विनियमित करने के लिये उससे संशक्त एवं आनुशांगिक अन्य विषयों के लिये एक अधिनियम के माध्यम से महर्षि पतंजलि संस्कृत संस्थान की 2008 में स्थापना हुई।
म. प्र. शासन स्कूल शिक्षा विभाग मंत्रालय वल्लभ भवन भोपाल के आदेश क्रमांक एक 44-1/2007/20-3 राज्य शासन द्वारा महर्षि पतंजलि संस्कृत संस्थान अधिनियम 2007 की धारा 3(1) के प्रावधान अनुसार महर्षि पतंजलि संस्कृत संस्थान 18-08-2008 से प्रभावशील हो गया है। महर्षि पतंजलि संस्कृत संस्थान में जीवाजी वेधशाला उज्जैन एवं राज्य योग प्रशिक्षण केन्द्र भोपाल को निहित किया गया है।
वर्तमान में माननीय कुँवर विजय शाह जी,मंत्री, स्कूल शिक्षा विभाग, महर्षि पतंजलि संस्कृत संस्थान के चेयरमेन तथा
श्री प्रभातराज तिवारी संस्थान के निदेशक है।
सम्पर्कम्
तुलसी नगर, भोपाल (मध्यप्रदेश) – 462003
फोन नं.- 0755-2576296, 2552168
ई-मेल : maharshipatanjali2014@gmail.com
भारतस्य संस्कृत-अकादम्यः