अनूदिता कज्जली
आचार्य डॉ. भूषणलाल शर्मा
गुरुविरजानन्द गुरुकुल, करतापुर
अब के सावन में शरारत ये मेरे साथ हुई ।
मेरा घर छोड़के कुल शहर में हरसात हुई ।।
कीदृगुपहासेऽभवन्मे नभसी मासि सभगते ।
गृहं मे समुपेक्ष्य देवीऽवर्षतात्र पुरेऽखिले ।।
जिंदगी भर तो हुई गुफतगू गैरों से मगर ।
आज तक हमसे हमारी न मुलाकात हुई ।।
जीवनं यावन्मदीयं मेलनं जातं पर परैः ।
कि मदीय मेलनं जातं मया नद्यावधि ।।
आप मत पूछिए क्या हम पै सफर में गुजरी ।
था लुटेरॆ का जहां गाँव वहीं रात हुई ।।
कि नु पृच्छसि त्वं मदीया कीदृशी यात्राऽभवत् ।
लुण्टाकानामतसथ एव गता मे यामिनी ।।
हर गलत मोड़पै ठोका न किसी ने मुझको ।
एक आवाज़ तेरी जबर से मेरे साथ हुई ।।
अध्वनि भ्रष्टोऽपि हाऽहं वारितो न पदे पदे ।
स ध्वनिस्ते सङ्रभूतो मेऽभवद्यस्माद् दिनात् ।।
मैंने पूछा कि मेरे देश की हीलात क्या है ।
इक भिखारी से तभी मेरी मुलाकात हुई ।।
मया पृष्टोऽसौ दशा का वर्तते देशस्य मे ।
सत्वरं हा दृष्टिथमायात एको भिक्षुकः।।
सौजन्यम्-विश्व-संस्कृतम् (त्रैमासिकम्) जून, सितम्बर, 2010 ई०
विश्वेश्वरानन्द-वैदिकशोध-संस्थानम्
साधु-आश्रमः, होश्यारपुरम् पञ्जाब